5 Lekhak ka Jiwan parichay: यहाँ पर पाँच लेखकों का जीवन परिचय बहुत अच्छी तरह से दिया गया है जिनमे प्रमुख रूप से हैं: रामधारी सिंह दिनकर ,जय शंकर प्रसाद ,भारतेन्दु हरिश्चंद्र,रामबृक्ष बेनीपुरी,आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ।
5 Lekhak ka Jiwan parichay
पाँच लेखकों का जीवन परिचय नीचे दिया गया है ।
1.रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
रामधारी सिंह दिनकर (23 सितंबर 1908 – 24 अप्रैल 1974) एक भारतीय कवि, लेखक, निबंधकार और राजनेता थे. वे आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं. उन्हें “राष्ट्रकवि” के नाम से भी जाना जाता है।
दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. उनके पिता रवि सिंह एक किसान थे और उनकी माता मनरूप देवी एक गृहिणी थीं. दिनकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में प्राप्त की और बाद में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की.
दिनकर ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता लिखकर की. उनकी पहली कविता संग्रह “उर्वशी” 1934 में प्रकाशित हुआ. इस संग्रह में उन्होंने प्रेम, प्रकृति और देशभक्ति के विषयों पर कविताएँ लिखीं. दिनकर की कविताओं में ओज, विद्रोह और आक्रोश का भाव है. वे राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे.
दिनकर ने हिंदी साहित्य में कई महत्वपूर्ण रचनाएँ की हैं. उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
- उर्वशी (1934)
- कुरुक्षेत्र (1946)
- रघुकुल वंश (1950)
- उर्वशी की राख (1960)
- संकल्प (1965)
- गीत और गीतिका (1936)
- नया क्षितिज (1943)
- स्वर्ण युग (1952)
- जय-जय धरा (1963)
दिनकर को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें से प्रमुख हैं:
- ज्ञानपीठ पुरस्कार (1959)
- पद्म भूषण (1968)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1954)
दिनकर का निधन 24 अप्रैल 1974 को चेन्नई में हुआ. वे हिंदी साहित्य के एक महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी थे. वे आज भी अपने साहित्य के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हैं.
2.जय शंकर प्रसाद का जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद (1889-1937) हिंदी के छायावादी युग के प्रसिद्ध कवि, नाटककार, उपन्यासकार और निबंधकार थे. वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक प्रमुख स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं।
प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में हुआ था. उनके पिता देवी प्रसाद एक प्रसिद्ध उद्योगपति थे और उनकी माता मुन्नी देवी एक धार्मिक महिला थीं. प्रसाद का बचपन वाराणसी में बीता और उन्होंने यहीं से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की.
प्रसाद ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता के साथ की. उन्होंने अपनी पहली कविता पुस्तक “कानन कुसुम” 1913 में प्रकाशित की. इसके बाद उन्होंने कई अन्य कविता पुस्तकें प्रकाशित की, जिनमें “चित्राधर” (1918), “झरना” (1922), “आँसू” (1923), “लहर” (1924), “कामायनी” (1935) और “प्रेम पथिक” (1936) शामिल हैं.
प्रसाद ने नाटक लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कई प्रसिद्ध नाटक लिखे, जिनमें “स्कंदगुप्त” (1927), “चंद्रगुप्त” (1933), “अजातशत्रु” (1934), “जनमेजय का नाग यज्ञ” (1935) और “ध्रुवस्वामिनी” (1936) शामिल हैं.
प्रसाद ने उपन्यास लेखन में भी हाथ आजमाया. उन्होंने एक उपन्यास “इरावती” (1936) लिखा, जो उनके जीवन का अंतिम उपन्यास था.
प्रसाद ने निबंध लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कई प्रसिद्ध निबंध लिखे, जिनमें “काव्य और कला” (1922), “भारतीय संस्कृति” (1923), “हिन्दू धर्म” (1924) और “भारतीय समाज” (1925) शामिल हैं.
प्रसाद का निधन 15 नवंबर 1937 को वाराणसी में हुआ था. वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अमर हस्ती के रूप में जाने जाते हैं।
3.भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
भारतेन्दु हरिश्चंद्र (9 सितंबर 1850 – 6 सितंबर 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह माने जाते हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. वे एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार, पत्रकार, संपादक और समाज सुधारक थे।
हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद और माता का नाम पार्वती देवी था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की. बाद में उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई की, लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए.
हरिश्चंद्र ने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता से की. उन्होंने अपनी पहली कविता “भारतवर्ष” 1867 में लिखी थी. इसके बाद उन्होंने कई कविता संग्रह प्रकाशित किए, जिनमें “भारतेंदु गीतावली”, “भारतेंदु काव्य संग्रह” और “भारतेंदु नाटक संग्रह” शामिल हैं.
हरिश्चंद्र ने नाटक, उपन्यास, पत्रकारिता और समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कई नाटक लिखे, जिनमें “अंधेर नगरी”, “नीलदेवी” और “सती” शामिल हैं. उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे, जिनमें “चंद्रकान्ता”, “स्वर्ग सुंदरी” और “यशोधरा” शामिल हैं. वे एक पत्रकार और संपादक भी थे. उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनमें “दैनिक कर्मवीर”, “दैनिक हितकारक” और “दैनिक समाचार” शामिल हैं. वे एक समाज सुधारक भी थे. उन्होंने कई सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई.
हरिश्चंद्र का निधन 6 सितंबर 1885 को वाराणसी शहर में हुआ था. वे हिंदी साहित्य के एक महान कवि, नाटककार, उपन्यासकार, पत्रकार, संपादक और समाज सुधारक थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।5 Lekhak ka Jiwan parichay
4.रामबृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय
रामबृक्ष बेनीपुरी (23 दिसंबर 1899 – 9 सितंबर 1968) हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, नाटककार, निबंधकार, कहानीकार और पत्रकार थे. वे हिंदी के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य में कई नए प्रयोग किए और हिंदी को एक समृद्ध और आधुनिक भाषा के रूप में स्थापित किया।
बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा बेनीपुर में ही प्राप्त की. बाद में वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने गए, लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए.
बेनीपुरी ने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता से की. उनकी पहली कविता “प्रतिभा” 1913 में प्रकाशित हुई थी. इसके बाद उन्होंने कई कविता संग्रह प्रकाशित किए, जिनमें “कानन कुसुम”, “झरना”, “आँसू”, “लहर”, “कामायनी” आदि शामिल हैं.
बेनीपुरी ने नाटक, कहानी, उपन्यास और निबंध भी लिखे. उनके नाटकों में “स्कंदगुप्त”, “चंद्रगुप्त”, “ध्रुवस्वामिनी”, “प्रायश्चित” आदि शामिल हैं. उनकी कहानियों का संग्रह “छाया”, “आकाशदीप” और “इंद्रजाल” है. उनके उपन्यास “कंकाल” और “इरावती” हैं. उनके निबंधों का संग्रह “काव्य और कला” है.
बेनीपुरी का साहित्य भारतीय संस्कृति और दर्शन से गहराई से प्रभावित है. उन्होंने अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति और दर्शन के अमूल्य विचारों को प्रस्तुत किया है. बेनीपुरी का साहित्य अत्यंत समृद्ध और बहुआयामी है. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई ऊंचाई प्रदान की है.
बेनीपुरी का निधन 9 सितंबर 1968 को मुजफ्फरपुर में हुआ था. वे हिंदी साहित्य के एक महान कवि, नाटककार, निबंधकार, कहानीकार और पत्रकार थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक अमूल्य धरोहर दी है.
बेनीपुरी की प्रमुख कृतियाँ हैं:
- कविता संग्रह: “कानन कुसुम”, “झरना”, “आँसू”, “लहर”, “कामायनी” आदि
- नाटक: “स्कंदगुप्त”, “चंद्रगुप्त”, “ध्रुवस्वामिनी”, “प्रायश्चित” आदि
- कहानी संग्रह: “छाया”, “आकाशदीप” और “इंद्रजाल”
- उपन्यास: “कंकाल” और “इरावती”
- निबंध संग्रह: “काव्य और कला”
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5. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (1877-1959) हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार, विद्वान, पत्रकार और शिक्षाविद् थे. वे हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक थे।
द्विवेदी का जन्म 1877 में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के त्रिभुवनपुर गांव में हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी और संस्कृत में स्नातक और परास्नातक की उपाधि प्राप्त की.
द्विवेदी ने हिंदी साहित्य के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने हिंदी को एक समृद्ध और आधुनिक भाषा के रूप में स्थापित किया. उन्होंने हिंदी साहित्य में छायावादी काव्यधारा का प्रारंभ किया. उन्होंने हिंदी साहित्य में कई नए शब्दों और मुहावरों का प्रयोग किया. उन्होंने हिंदी साहित्य में कई नए विषयों को शामिल किया.
द्विवेदी ने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1900 में “सरस्वती” पत्रिका की स्थापना की. “सरस्वती” पत्रिका हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण पत्रिका थी. इस पत्रिका ने हिंदी साहित्य के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया.
द्विवेदी ने हिंदी शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1905 में “काशी हिंदू विश्वविद्यालय” में हिंदी के प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के अध्ययन को बढ़ावा दिया. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के कई पाठ्यक्रमों की शुरुआत की.
द्विवेदी को हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित किया. वे हिंदी साहित्य के एक महान विद्वान, पत्रकार, शिक्षाविद् और साहित्यकार थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई ऊंचाई प्रदान की.
द्विवेदी की प्रमुख कृतियाँ हैं:
- कविता संग्रह: “उर्वशी”, “कल्पना”, “मधुबाला”, “चिन्ता”, “प्रेम”, “अनामिका” आदि
- उपन्यास: “सेवासदन”, “कालिका”, “चंद्रकांता”, “गोदान” आदि
- नाटक: “महाराणा प्रताप”, “सत्य हरिश्चंद्र”, “महाभारत” आदि
- निबंध संग्रह: “हिंदी साहित्य का इतिहास”, “छायावाद”, “अंग्रेजी साहित्य का इतिहास”, “भारतीय दर्शन” आदि
द्विवेदी का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है. वे हिंदी साहित्य के एक महान विद्वान, पत्रकार, शिक्षाविद् और साहित्यकार थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई ऊंचाई प्रदान की। 5 Lekhak ka Jiwan parichay
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