डॉक्टर जाकिर हुसैन (1897-1969): डॉ. जाकिर हुसैन एक प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी व एक महान शिक्षाशास्त्री थे। इनका जन्म फरवरी 1897 में हैदराबाद में एक अफगानी परिवार में हुआ था। 1913 में इटावा के “इस्लामिया हाईस्कूल” से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ के “मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज” में प्रवेश लिया। जाकिर हुसैन अपने समय के मेधावी विद्यार्थी थे तथा साथ ही साथ अन्य कार्यकलापों में भी असाधारण रूप से उनकी प्रतिभा का निखार देखने को मिलता था।
जाकिर हुसैन का राजनैतिक जीवन 1920 में शुरू हुआ तथा गांधी के आह्वान पर 1921 के असहयोग आंदोलन में एक वीर सेनानी के रूप में अपने आपको देश की आजादी प्राप्ति के पथ पर समर्पित कर दिया तथा शिक्षा संस्थान के अध्ययन से अलग कर लिया। गांधी के मिशन से गहरे रूप में प्रभावित होने के बाद राष्ट्रीय शिक्षा के केंद्रीय विकास के लिए कुछ विद्यार्थियों व अध्यापकों की मदद से एक संस्थान की स्थापना की जो कि बाद में जामिया मिलिया इस्लामिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।1923 में वे उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए जर्मनी गये तथा 1926 में बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।Dr. Jakir Husain
जर्मनी में अपनी यात्रा के दौरान जाकिर हुसैन जामिया के साथ भी संपर्क में रहे और घनिष्ठ रूप में उसके विकास के लिए प्रयास करते रहे। 1926 में भारत वापस आने पर 29 वर्ष की अवस्था में विश्वविद्यालय के उप-कुलपति के पद पर नियुक्त किये गये । उनके कैप्टनशिप के अंतर्गत उन्होंने जामिया को उच्च शिखर पर पहुंचाया, जिसके परिणामस्वरूप इस विश्वविद्यालय ने विश्व के शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।डॉ. जाकिर हुसैन 2631997 में उन्होंने वर्धा में राष्ट्रीय योजना सम्मेलन में भाग लिया। जाकिर हुसैन को “प्रारंभिक राष्ट्रीय शिक्षा योजना” का विस्तार प्रारूप तैयार करने का भार सौंपा गया। इस संबंध में उनके द्वारा तैयार प्रारूप बड़े स्वागत के साथ स्वीकृत कर लिया गया। इसके साथ ही साथ जाकिर हुसैन ने प्रारंभिक शिक्षा प्रचार की भी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। Dr. Jakir Husain
1948 में उन्हें सर्वसम्मति से यूनिवर्सिटी कोर्ट द्वारा “अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय” का उपकुलपति नियुक्त किया गया। 1948 में उन्हें “भारतीय विश्वविद्यालय आयोग” का एक प्रतिष्ठित सदस्य नियुक्त किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में उनके प्रतिभायुक्त कार्यों को देखते हुए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) के प्रशासनिक बोर्ड में एक सदस्य के रूप में नियुक्त किये गये। वह “भारतीय प्रेस आयोग”, “अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सेवा” तथा सीबीएसई आदि से भी जुड़े रहे।डॉ. जाकिर हुसैन 1952 व 1956 में दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। 1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। 1962 में उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति पद पर नियुक्त किया गया। 1967 में उन्हें देश के राष्ट्रपति पद पर नियुक्त किया गया। Dr. Jakir Husain
उनका देहांत 3 मई 1969 को उस पद पर रहते ही हो गया।डॉ. जाकिर हुसैन ने प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक तथा एडविन कैनन की पुस्तक इलिमेंटरी पोलिटिकल इकोनामी का अनुवाद किया। उन्होंने जर्मन भाषा में एक पुस्तक लिखी-डाई बोट्स चाफ्टडेस महात्मा गांधी। उनके बहुत से भाषणों का संकलित जो कि भिन्न-भिन्न सभाओं व अधिवेशन में दिया गया, का संकलन रूप डायनामिक यूनिवर्सिटी नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। उन्होंने बच्चों के लिए बहुत-सी छोटी-छोटी कहानियां उपनाम या छद्म नाम से लिखी। उनमें से एक था रुक्कैया रेहाना ।एक महान शिक्षाशास्त्री के रूप में वह इस बात पर जोर देकर कहते थे कि प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर ही एक बच्चे का, चहुंमुखी विकास किया जा सकता है। Dr. Jakir Husain
वह इस बात के भी प्रबल रूप से समर्थक थे कि धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चलकर ही साम्प्रदायिकतापूर्ण राजनीति व व्यवहार से छुटकारा पाया जा सकता है। डॉ. जाकिर हुसैन का आध्यात्मिक दर्शन के ज्ञान का भी कोई जवाब नहीं जिसके चलते उनकी जिंदगी भी सूफी संतों के अनुरूप रही। राष्ट्र के लिए पूर्ण रूप से समर्पित मानवीय गुणों के इस चितेरे को 1963 में भारत रत्न के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।Dr. Jakir Husain