दादाभाई नौरोजी कौन थे, सिद्धांत, जयंती, जन्म तारीख, मृत्यु, राजनीतिक सफर, कैरियर, Dadabhai Naoroji Biography History Quotes In Hindi, date of birth, birth place, death, political journey । ये बहुत ही समाज सुधारक और समाज में फैली बुराईयों के घोर विरोधी थे । ये जहां से पढ़े थे उसी कॉलेज में अध्यापक नियुक्त कर दिए गए थे ।
Dadabhai Naoroji Biography in Hindi
1
नाम
दादाभाई नौरोजी
2
पिता का नाम
पलंजी डोर्डी
3
माता का नाम
मन्नेक बाई नैरोजी
4
जन्म तिथि
4 सितंबर 1825
5
जन्म स्थान
बॉम्बे भारत
6
पत्नी का नाम
गुलबाई
7
निवास स्थान
लंदन
8
पार्टी का नाम
लिबरल पार्टी
9
मृत्यु
30 जून 1917
10
अन्य पार्टी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
11
शिक्षण संस्थान
एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट
Dadabhai Naoroji Biography
दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय
इनका जन्म 4 सितंबर, 1825 में हुआ । विश्वविद्यालयों की स्थापना के पूर्व के दिनों में एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट में इन्होंने शिक्षा पाई जहां के ये मेधावी छात्र थे। उसी संस्थान में अध्यापक के रूप में जीवन आरंभ कर आगे चलकर वहीं वे गणित के प्रोफेसर हुए जो उन दिनों भारतीयों के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में सर्वोच्च पद था। Dadabhai Naoroji Biography
पारसियों के इतिहास में अपनी दानशीलता और प्रबुद्धता के लिए प्रसिद्ध ‘कैमास’ बंधुओं ने दादाभाई को अपने व्यापार में भागीदार बनाने के लिए आमंत्रित किया। तदनुसार दादाभाई लंदन और लिवरपूल में उनका कार्यालय स्थापित करने के लिए इंग्लैण्ड गये। विद्यालय के वातावरण को छोड़कर एकाएक व्यापारी बन जाना एक प्रकार की अवनति या अवपतन समझा जा सकता है, परन्तु दादाभाई ने इस अवसर को इंग्लैण्ड में उच्च शिक्षा के लिये जाने वाले विद्यार्थियों की भलाई के लिए उपयुक्त समझा।
इसके साथ ही साथ उनका दूसरा उद्देश्य प्रशासकीय संस्थाओं का अधिक से अधिक भारतीयकरण करने के लिये आंदोलन चलाने का भी था। जो विद्यार्थी उन दिनों उनके संपर्क में आए और उनसे प्रभावित हुए उनमें फिरोजशाह मेहता, मोहनदास करमचन्द गांधी और मुहम्मद अली जिन्ना का नाम उललेखनीय है। 1867 में अपने मित्रों के साथ मिलकर लंदन इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की।
1869 में जब वह भारत वापस आए तो बम्बई में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की स्थापना की। बाद में उन्होंने बम्बई में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की शाखा को स्थापित किया। 1873 में कुछ समय के लिए दादाभाई ने बड़ौदा रियासत के दीवान पद पर भी काम किया। इसी वर्ष उन्होंने भारतीय वित्त पर फॉसेट प्रवर समिति के समक्ष बयान दिया।
राजनीतिक जीवन
1875 में दादाभाई को बम्बई नगर महापालिका का सदस्य चुना गया तथा 1885 में बम्बई विधायिक परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। 1892 में उदारवादी दल के प्रत्याशी के रूप में उन्हें किंसवरी निर्वाचन क्षेत्र से हाउस ऑफ कामंस के लिए चुना गया तथा 1895 तक वह संसद के निचले सदन के सदस्य रहे।
उनके प्रयासों से ही ब्रिटिश संसद के निचले सदन ने एक प्रस्ताव पारित करके आई.सी.एस. की परीक्षा को एक साथ इंग्लैण्ड व भारत दोनों स्थानों पर कराने की सिफारिश की थी। 1897 में दादाभाई ने भारतीय वित्त एवं व्यय पर वेल्वे आयोग के समक्ष अपने विचार रखे तथा सरकार की भारत विरोधी वित्त नीति की कटु आलोचना की।1885 में कांग्रेस की स्थापना होने पर दादाभाई नौरोजी कांग्रेस के साथ जुड़ गये।
कांग्रेस के साथ अपने दीर्घकालीन संपर्क में दादाभाई ने तीन बार 277अध्यक्ष के रूप में उसका मार्गदर्शन किया। प्रथम बार 1886 में कलकत्ता अधिवेशन के अध्यक्ष बने। तत्पश्चात् 1893 में लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की तथा 1906 में पुनः कांग्रेस का अध्यक्ष बन कर उन्होंने कांग्रेस की अवश्यम्भावी फूट को एक वर्ष के लिए टाल दिया। दादाभाई नौरोजी की राजनीतिक विचारधारा नरमदल कांग्रेसी की विचारधारा थी।
उन्हें अंग्रेजों की न्यायप्रियता में दृढ़ विश्वास था। वह स्वीकार करते थे कि अंग्रेजी राज्य की स्थापना से भारत अनेक रूप में लाभान्वित हुआ है। दादाभाई की यह मान्यताएं जीवन के कटु यथार्थ को उनकी आंखों से ओझल नहीं कर सकीं। उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि वर्तमान शासन प्रणाली भारतीयों के लिए विनाशकारी तथा निरंकुश हैं।
दादा भाई का अंग्रेजो के प्रति दृष्टिकोण
दादाभाई ने अंग्रेजों से जिस नीति परिवर्तन की आशा की थी वह फलीभूत नहीं हुई। उसका परिणाम यह निकला कि अंग्रेजी शासन के प्रति दादाभाई के दृष्टिकोण में ही परिवर्तन आ गया।भारतीय राष्ट्रवाद के लिए दादाभाई नौरोजी की सबसे बड़ी सेवा थी कि उन्होंने साम्राज्यवाद के आर्थिक शोषण का पर्दाफाश किया।
अपनी पुस्तक पॉवर्टी एण्ड अब्रिटिश रूल इन इण्डिया में उन्होंने आर्थिक निर्गत या निकासी के सिद्धांत को तथ्य व तर्कों के आधार पर प्रतिपादित किया। उन्होंने बताया कि अंग्रेज चार तरह से भारत का धन लूट कर अपने देश ले जा रहे हैं।
यह चार तरीके थे-
(i) ब्रिटिश अधिकारियों के पेंशनों का भुगतान ।
(ii) ब्रिटिश फौजों के खर्च के लिए युद्ध विभाग को भुगतान।
(iii) भारत सरकार का इंग्लैण्ड में व्यय ।
(iv) ब्रिटिश व्यावसायिक वर्गों द्वारा भारत में की गई कमाई का एक हिस्सा इंग्लैण्ड भेजकर ।
दादाभाई ने जनसंख्या की वृद्धि अर्थशास्त्र के नियमों के कार्य करने के तरीके को भारत की गरीबी के लिए जिम्मेदार नहीं माना। अपने लंबे जीवन में दादाभाई ने देश की सेवा के लिये जो बहुत से कार्य किए उन सबका वर्णन करना स्थानाभाव के कारण यहां संभव नहीं है किंतु स्वशासन के लिये अखिल भारतीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (1906) में उनके द्वारा की गई मांग की चर्चा करना आवश्यक है।
उन्होंने अपने भाषणों में ‘स्वराज्य’ को मुख्य स्थान दिया। अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “हम कोई कृपा की याचना नहीं कर रहे हैं, हमें तो केवल न्याय चाहिए। आरंभ से ही अपने प्रयत्नों के दौरान मुझे इतनी असफलताएं मिली हैं जो एक व्यक्ति को निराश ही नहीं बल्कि विद्रोही भी बना देने के लिये पर्याप्त थीं, पर मैं हताश नहीं हुआ हूं और मुझे विश्वास है कि उस थोड़े से समय के भीतर ही, जब तक मैं जीवित हूं सद्भावना, सच्चाई तथा समान से परिपूर्ण स्वायत्त शासन की मांग को परिपूर्ण करने वाला संविधान भारत के लिये स्वीकार कर लिया जाएगा। उनकी यह आशा उस समय पूरी हुई जब वे सार्वजनिक जीवन से अवकाश ग्रहण कर चुके थे।
पूर्व और पश्चिम में कांग्रेसी कार्यकर्ता तथा उनके मित्र भारत की नई पीढ़ी की आशाओं के अनुसार संवैधानिक सुधारों को मूर्त रूप देने के लिये प्रस्ताव तैयार करने में व्यस्त थे । परंतु 20 अगस्त, 1917 की घोषणा के दो माह पूर्व दादाभाई की मृत्यु हो चुकी थी।
Mahatma Gandhi ,मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात राज्य के एक छोटे से शहर पोरबन्दर में हुआ था। इनके पिता का नाम करमचन्द तथा माता का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी के पिता पोरबंदर, राजकोट तथा बांकानेर रियासतों के दीवान रहे। इनकी प्रथमिक शिक्षा राजकोट में हुई तथा 1881 में इनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ।
mahatma gandhi information
1884-85 में कुसंगतिवश इन्होंने चोरी-छिपे मांस भक्षण किया किंतु इनका सत्यवादी मन इसे छिपा नहीं सका और अपने माता-पिता के समक्ष अपने इस कृत्य के लिए क्षमायाचना कर प्रायश्चित किया अर्थात् असत्य को त्याग कर उन्होंने सत्य का अंगीकरण किया।
Mahatma Gandhi ji की शिक्षा
गांधी जी 7 वर्ष की आयु में स्कूल गये। उन्होंने 1888 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और उच्च शिक्षा के लिए भावनगर गये लेकिन वे वहां पर जम नहीं पाये। उस समय उनके एक मित्र मावजी दवे ने गांधी जी को इंग्लैंड जाने का परामर्श दिया।
Mahatma Gandhi जी 4 सितम्बर, 1888 को बैरिस्टर की पढ़ाई हेतु बम्बई से इंग्लैंड गए। आरंभ में वे एक भद्र अंग्रेज पुरुष जैसे दिखने के लिए बहुत चिन्तित थे और इसलिए उन्होंने 3 महीने तक नाच, फ्रांसीसी भाषा एवं अच्छा भाषण देने की कला सीखने का प्रयास किया, लेकिन इस क्षेत्र में वे असफल रहे। इसके बाद उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने, भोजन स्वयं बनाने व पढ़ाई के प्रति ध्यान देना आरंभ किया।
आरम्भ में इंग्लैंड के वातावरण के अनुसार ढलने में विफल रहने के उपरांत उन्हें शराब, स्त्री तथा मांसाहार से दूर रहने के अपनी माताजी को दिए अपने तीन वचनों की याद आई तथा उन्होंने इसके लिए पश्चाताप भी किया और शाकाहार को अपने जीवन का अंग बना लिया।
Mahatma Gandhi जी ने ब्रह्मवादियों को अपना मित्र बनाया व श्रीमती एनी बेसेन्ट और मादाम बलावत्सकी से परिचित हुए। इस प्रकार उनका झुकाव भारतीय दर्शन व धार्मिक पुस्तकों की ओर हुआ। उन्होंने बाइबल का अध्ययन किया और एक नया अनुभव प्राप्त किया तथा वे उसके दर्शन से अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने एडविन आर्नोल्ड की पुस्तकों सांग ऑफ सिलेस्टल तथा लाइट ऑफ एशिया का गहन अध्ययन किया।
Mahatma Gandhi जी ने भागवत गीता को आध्यात्मिक कोष के रूप में देखा। भिन्न-भिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों के सम्पर्क में आने तथा अनेक प्रकार की धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के बाद गांधी जी ने कहा कि उनके मन की ‘नास्तिकता रूपी रेगिस्तान’ की दीवार ढह गई है। वे 1891 में भारत वापस आ गये।
दक्षिण अफ्रीकाः
गांधी जी के बम्बई पहुंचने के पूर्व ही उनकी माताजी का देहान्त हो गया। पिता जी का देहान्त छह वर्ष पहले हो ही गया था। भारतीय कानून का अध्ययन नहीं करने के कारण उन्हें अदालत में प्रैक्टिस करते समय परेशानी महसूस होने लगी। उसी बीच पोरबन्दर के एक व्यापारी ने उनके बड़े भाई को पत्र लिख कर प्रस्ताव दिया कि दक्षिण अफ्रीका में उनके व्यापार से संबंधित एक दीवानी मुकदमे में गांधी जी को व्यस्त कर दिया जाये। उस समय वे 24 वर्ष के भी नहीं थे। आरंभ में वह एक वर्ष के लिए दक्षिण अफ्रीका गये लेकिन बीच-बीच में कुछ समय को छोड़कर उन्होंने 21 वर्ष (1893-1914) तक वहां निवास किया।Mahatma Gandhi
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 22 मई, 1894 को गांधी जी को सचिव पद पर मनोनीत किया। 1896 के मध्य में वे भारत आए तथा 6 महीने रुकने के बाद अपनी पत्नी व 2 बच्चों के साथ पुनः दक्षिण अफ्रीका वापस चले गये। बोर युद्ध में, यद्यपि गांधी की सच्ची सहानुभूति बोरों के साथ थी पर ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन नागरिक होने के कारण उन्होंने अंग्रेजों के पक्ष में रहने का निर्णय लिया।
गांधी जी 1901 में भारत वापस आ गये। वापस आने के कुछ दिन बाद उन्होंने कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। दक्षिण अफ्रीका संबंधी गांधी द्वारा प्रस्तुत संकल्प बिना किसी पूर्व सूचना के कम समय में ही सर्वसम्मति से पारित हो गया और यह जंगल की आग की तरह फैल गया, जिसे सुनकर व पढ़कर गांधी को कष्ट हुआ। शीघ्र ही वे एक भ्रमण के लिए निकल पड़े और रंगून, बनारस, आगरा, जयपुर व पालनपुट आदि की ट्रेन से तृतीय श्रेणी में यात्रा करते हुए राजकोट पहुंचे। 1902 के अन्त में वे पुनः दक्षिण अफ्रीका गए।
भारत छोड़ने से पहले गांधी ने सोचा था कि वे कुछ ही महीने वहां रहेंगे पर वे पूरे 12 वर्ष तक दक्षिण अफ्रीका में रहे। सर्वप्रथम गांधी जी ने वहां पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रचलित वंशवाद के अत्याचारों के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन के माध्यम से लड़ने का प्रयास किया। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने ‘फीनिक्स फार्म’ में रहने वाले समुदायों के विचारों पर एक प्रयोग किया।
बाद में 1910 में उन्होंने एक ‘टॉलस्टॉय फार्म’ की स्थापना की। वहां के निवासी शाकाहारी थे और इस प्रयोग को उन्होंने अपने प्रतिदिन के कार्यकलापों में स्थान दिया। यद्यपि कोई भी संघर्ष अपने उद्देश्य प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया तथापि गांधी जी ने निश्चित रूप से बहुमूल्य अनुभव प्राप्त किये।Mahatma Gandhi
भारत में वापसी
9 जनवरी, 1915 को गांधी जी और कस्तूरबा गांधी बम्बई पहुंचे। उनके स्वागत में फिरोजशाह मेहता की अध्यक्षता में एक नागरिक अभिनन्दन की तैयारी की गई, जिसमें हर समुदाय के लोगों ने भाग लिया। 1915 में ‘फीनिक्स’ व ‘टॉलस्टॉय’ फार्मों के अनुरूप उन्होंने अहमदाबाद के पास ‘कोचर्ब’ में किराए के मकान में ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की, जिसे शीघ्र ही उन्होंने वहां से हटाकर साबरमती नदी के किनारे स्वयं की जमीन पर स्थापित किया। वह 16 वर्षों तक वहां रहे। स्वतन्त्रता आंदोलन के अधिकांश सक्रिय नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन की शिक्षा इसी आश्रम से ग्रहण की। भारत आने पर वे गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आए। जिनके विचार व चिन्तन बिल्कुल उनके चिन्तन के अनुरूप थे।
लोगों के वास्तविक जीवन के बारे में जानने के लिए उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष का भ्रमण किया। राजनैतिक कार्यकर्ताओं से लेकर निम्न से निम्न वर्ग के लागों से मिलने के बाद जब गांधी जी ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया तब सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए उन्होंने स्वयं को व्यस्त रखा और उनका समाधान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से नहीं बल्कि अपने तरीके से करने का प्रयास किया।
प्रथम सत्याग्रहः
1916 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान बिहार के एक किसान राजकुमार शुक्ला ने उत्तरी बिहार के चम्पारण जिले में भ्रमण हेतु निवेदन किया, जहां बटाई पर नील की खेती करने वाले किसानों पर खेतों के अंग्रेज मालिक बहुत बेदर्दी से अत्याचार कर रहे थे। चम्पारण के सत्याग्रह ने 28 लाख किसानों को प्रभावित किया। धीरे-धीरे संघर्ष ‘तिनसुखिया’ के चारों ओर केन्द्रीभूत हो गया क्योंकि वे एक शताब्दी से अंग्रेजों के अत्याचार को झेल रहे थे।
अंग्रेज मालिकों ने ऐसा नियम बना रखा था कि जिसके अनुसार नील की खेती का सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा काश्तकारों को मिल पाता था और शेष फसलों की खेती का हिस्सा जबरदस्ती वे वसूल कर लेते थे। इस प्रकार किसानों को कुछ भी फायदा नहीं रहता था।
गांधी जी ने घोषणा की कि वे खेत मालिकों को शत्रु के रूप में नहीं देख रहे हैं। यह घोषणा बहुत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने सरकार को किसानों के कष्ट निवारण के लिए एक आयोग स्थापित करने के लिए बाध्य कर दिया। गांधी जी भी उस आयोग के सदस्य थे। यद्यपि स्पष्ट रूप से खेत मालिकों के किसानों के प्रति क्रूरता व उदण्डता के व्यवहार के अनेक प्रमाण व गवाह थे।
गांधी जी ने घोषणा की कि अतीत में जो बीत गया सो बीत गया उससे कोई मतलब नहीं पर वर्तमान समय में वे अपनी क्रूरता व अत्याचारों को संतोषजनक ढंग से बंद कर दें। इस प्रकार वे खेत के मालिकों पर विजय प्राप्त कर सके। उन्होंने ज्यादा क्षति पूर्ति के लिए भी हठ नहीं किया, उन्होंने कहा कि किसानों को कुल मूल्य का कम से कम 25 प्रतिशत वापिस कर दिया जाए और खेत मालिक यह गारंटी दें कि किसानों से अब जबरदस्ती वसूली नहीं की जाएगी। दोनों तरफ से एक संतोषजनक समझौता हुआ और सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि किसानों को खेत मालिकों की क्रूरता व निष्ठुर शासन से राहत की सांस मिली।
Mahatma Gandhi ने शीघ्र ही अहमदाबाद के मिल श्रमिकों का भी प्रश्न उठाया जिनकी मजदूरी बहुत कम थी। मजदूरों को उचित मजदूरी दिलाने के संघर्ष में अनुसूइया बाई ने अपने करोड़पति भाई के खिलाफ गांधी का साथ दिया। गांधी जी ने एक हड़ताल का संचालन किया और मजदूरों में एकता हेतु अनशन किया। अन्त में, मिल-मालिकों को झुकना पड़ा व इस तरह निर्णय मजदूरों के पक्ष में हुआ।
उसके बाद गांधी जी खेड़ा गये। यहां के गरीब किसान पहले ही ज्यादा करों के बोझ से दबे हुए थे और दूसरी ओर फसल बर्बाद हो जाने से अकाल से लड़ रहे थे। सरकार को मजबूरन यह घोषणा करनी पड़ी की जमीन की मालगुजारी सिर्फ वही किसान देंगे जो कि लगान देने में सक्षम होंगे। एक बार फिर सत्याग्रह आन्दोलन ने किसानों को सत्ताधारियों की क्रूरता व भय से छुटकारा दिलाने में मदद की।
असहयोग आंदोलनः
प्रथम विश्व युद्ध में भारत के लोगों और गांधी ने ब्रिटेन का साथ इसलिए दिया कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत की स्वय की सरकार बनाने में ब्रिटेन स्वीकृति दे देगा। लेकिन वास्तव में क्या घटित हुआ, भारतीयों की स्व-शासन की आशाओं के विपरीत ब्रिटिश सरकार 1919 में ‘रॉलेट एक्ट’ पारित करवा दिया । जिसके नियम बहुत ही सख्त कठोर व हर कदम पर रुकावट डालने वाले थे।
इस अधिनियम से लोगों में अत्यंत तनाव एवं रोष व्याप्त हो गया और इसका सबसे दर्दनाक काण्ड 11 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार था जिसमें जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गालियां चलाने के आदेश दिए। इस घटना में 1500 से अधिक निर्दोष भारतीय मारे गये।
इस दर्दनाक घटना की जांच के लिए गठित ‘हण्टर आयोग’ द्वारा भारत के लोगों के पक्ष में रिपोर्ट देने के बावजूद उनके दुःखों पर मलहम लगाने का काम नहीं किया। यहां तक कि अंग्रेजों ने इस भयानक घटना के पश्चात पश्चाताप का एक शब्द भी नहीं बोला। उसी समय गांधी ने इस अधिनियम की खिलाफत करने के लिए निर्देश जारी कर दिए। गांधी जी ने सोचा कि यही अवसर है जब कि हिन्दुओं औ मुसलमानों में एकता का सामंजस्य लाकर ‘अहसयोग आंदोलन’ के माध्यम से अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया जाए।
अप्रैल 1920 में गांधी जी ने बम्बई में यह घोषणा की कि यदि ‘रॉले अधिनियम’ वापस नहीं लिया गया तो शासकों के साथ रहना असम्भव होगा पहली बार उन्होंने अंग्रेजों की आलोचना की यद्यपि यह केवल एक चेतावनी थी तथापि ब्रिटेन से हर तरह का सम्बन्ध तोड़ने का विचार किया गया।
कुछ सप्ताह बाद 1 अगस्त, 1920 को वायसराय को लिखे एक पत्र में उन्होंने कह कि, “मैं ब्रिटिश सरकार की न तो इज्जत कर सकता है और न ही उससे लगाव रख सकता हूं क्योंकि वे अपने किये अन्यायपूर्ण कार्यों से बचने व लिए गलतियों पर गलतियां किये जा रहे हैं।” इस पत्र के साथ ही उन्होंने असहयोग आंदोलन के माध्यम से सरकार का घेराव करना शुरू कर दिया बहुत दिनों तक प्रतीक्षा करने के बाद भी सरकार की तरफ से न तो को सकारात्मक संकेत आया और न ही सरकार ने झुकने का नाम लिया। उसी दिन राष्ट्रीय आंदोलन के प्रतिष्ठित नेता बाल गंगाधर तिलक का देहान्त हो गया।
वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने अगस्त 1920 में असहयोग आंदोलन पर टीका-टिप्पणी करते हुए दोषारोपण किया कि, “यह आन्दोलन सबसे मूर्ख लोगों की मूर्ख योजना है।” गांधी जी ने इसे हानिरहित असाधारण आन्दोलन के रूप में देखा पर आन्दोलन की बढ़ती गति को सरकार अपने हिंसात्मक तरीकों से रोक नहीं पायी।
Mahatma Gandhi जी का असहयोग आन्दोलन का विचार साधारण लगते हुए भी तत्कालीन समय में एक बहुत ही शक्तिशाली पुकार थी। दिसम्बर 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी ने वादा किया कि यदि पूरा भारत असहयोग व अहिंसात्मक आन्दोलन के अनुरूप चल पड़ा तो 12 महीने के अन्दर भारत की अपनी सरकार होगी। गांधी जी ने इस संदेश को पूरे राष्ट्र को प्रेषित किया।
उन्होंने असहयोग आंदोलन को इस रूप में चलाया कि जबतक सभी लोग इसे अपने व्यक्तिगत जीवन में उतार कर नहीं चलेंगे तब तक ‘स्वराज’ प्राप्त नहीं हो सकता। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए मानवता की सेवा हेतु मिले अपने दो पुरस्कार ‘दक्षिण अफ्रीका का युद्ध पदक ‘व ‘केसर-ए-हिन्द’ स्वर्ण पदक वायसराय को वापस लौटा दिए।
जनवरी 1922 में ‘बारदोली सत्याग्रह’ व एक ‘रचनात्मक योजना’ को स्थापित किया गया। लॉर्ड रीडिंग को एक सप्ताह का नोटिस दिया गया कि यदि इस बीच सरकार की ‘प्रतिरोध नीति’ में परिवर्तन नहीं किया गया तो हम वृहद स्तर पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर देंगे। 1 फरवरी, 1922 को गांधी ने बारदोली में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ कर दिया। Mahatma Gandhi
5 फरवरी, 1922 को प्रदर्शनकारियों का एक समूह प्रदर्शन करते हुए उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से कस्बे चौरी-चौरा में एक पुलिस स्टेशन के सामने से गुजरा। इस प्रदर्शन में पीछे रह गये कुछ लोगों के साथ पुलिस ने गाली-गलौच की व दुव्यर्वहार किया तो उन्होंने स्वयं अपना बचाव किया। उसके बाद पुलिस ने फायरिंग करनी शुरू कर दी, तब प्रदर्शनकारियों की भीड़ उनका विरोध करने हेतु वापस आ गई। गोलियां समाप्त हो जाने के बाद पुलिस ने स्वयं को थाने के अन्दर बन्द कर लिया जिससे क्रोधित प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना 22 पुलिसकर्मी जल कर मर गये। पूरा आंदोलन हिंसा पर उतर आया।
हिंसा रोकने के लिए गांधी जी ने आन्दोलन वापस ले लिया जिससे आन्दोलनकारियों और कांग्रेसी नेताओं में निराशा छा गई। लेकिन गांधी जी ने विचार किया कि जन-समुदाय को तैयार किए बिना असहयोग आंदोलन चलाना एक बहुत बड़ी भूल होगी।
कांग्रेस की कार्यकारी समिति की बैठक गुजरात के बारदोली में 12 फरवरी को हुई, जिसमें गांधी जी की आज्ञा से असहयोग आंदोलन बन्द करने के लिए एक प्रस्ताव पारित हुआ। गांधी जी ने कांग्रेसियों को अपना समय रचनात्मक कार्यक्रमों को पूरा करने में लगाने के लिए प्रेरित किया।
10 मार्च, 1922 को उन्हें गिरफ्तार कर लिए गया। सरकार ने उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाया। गांधी जी ने घोषणा की कि बुराई के साथ ‘असहयोग’ करना उतना ही उचित है जितना कि अच्छाई के साथ ‘सहयोग’ करना। गांधी जी को 6 वर्ष के कारावास की सजा दी गई। सितम्बर 1924 में गांधी जी ने जातीय दंगों के विरोध में दिल्ली में मौलाना मुहम्मद अली के घर में 21 दिन का उपवास रखा।
रचनात्मक कार्यक्रम
गांधी जी ने रचनात्मक कार्यक्रम करने का एक दृढ़ निश्चय किया और उसके अनुसार व्यवस्था की, जैसे-चर्खे पर सूत कातना व खादी के कपड़े बुनना, शराब नहीं पीना, छुआछूत की भावना को जड़ समाप्त करना और हिन्दुओं व मुसलमानों को एकता के सूत्र से में बांधना आदि । अपने इन विचारों को प्रचारित करने के लिए गांधी जी ने समस्त भारत का भ्रमण किया। उस समय गांधी जी के लिए सामाजिक व आर्थिक कार्यक्रम बहुत ही महत्वपूर्ण थे।
Mahatma Gandhi जी ने महसूस किया कि समुदायों को राजनीतिक स्तर पर स्वतन्त्रता की बहुत ही आवश्यकता थी। 1928 में ‘साइमन आयोग’ का बहिष्कार किया गया। बारदोली में गांधी जी के सहयोग से सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में कर नहीं देने के सम्बन्ध में एक घेराव किया गया।
1929 में कांग्रेस ने एक संकल्प पारित कर यह घोषणा की कि यदि वर्ष के अंत तक स्व-शासन नहीं दिया गया तो वे पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग करेंगे। गांधी जी एक बार फिर राजनीतिक पटल पर छा गए परन्तु उन्होंने कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं किया। जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष बनाए गए। लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग की घोषणा कर दी गयी।
सिद्धांत के लिए उपवास
17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैक्डोनॉल्ड ने अनुसूचित जातियों के लिए अलग से निर्वाचन व्यवस्था करने हेतु जातीय पुरस्कार अधिसूचना प्रकाशित की। इस अधिसूचना के विरोध में गांधी जी 20 सितम्बर तक आमरण अनशन पर बैठे। किसी तरह अनेक नेताओं के एकमत प्रयासों के परिणामस्वरूप अनशन के पांचवें दिन ही यरवदा (या पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर हो गए।
दलित जातियों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था के स्थान पर सीटें आरक्षित कर दी गई। गांधी जी ने 26 सितम्बर को अपना अनशन समाप्त कर दिया। 8 मई, 1933 को गांधी जी ने पुनः 21 दिन का उपवास करने की घोषणा की, पर इस बार यह उपवास सरकार के विरोध में नहीं अपितु आत्मशुद्धि के लिए था ताकि वे शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होकर अपने अनुयायियों के साथ अनुसूचित जातियों की ठीक से सेवा कर सकें। उपवास आरम्भ करने के कुछ दिन बाद ही सरकार ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया।
राजनीति से दूर
मई 1934 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन अधिकारिक रूप से वापस ले लिए जाने के साथ ही गांधी जी ने पुनः अपने को सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया। 1933 में एक साप्ताहिक पत्रिका हरिजन का प्रकाशन आरम्भ कर दिया, जो कि नियमित प्रयत्नों के कारण पत्रिका यंग इंडिया की तरह सामाजिक बुराइयों व कुरीतियों के खिलाफ प्रसिद्धि पा चुकी थी।
Mahatma Gandhi ने 1934 से लेकर 1940 तक स्वयं को पूर्ण रूप से गांवों के विकास कार्यों में लगा दिया। उनके रचनात्मक कार्यक्रम को कोई भी नाम दे दिया जाए पर उनका मुख्य लक्ष्य था, “स्वराज प्राप्ति के लिए एक स्वस्थ एवं मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना।” 1984 में उन्होंने साबरमती आश्रम को एक हरिजन समूह को दे दिया और अपना मुख्यालय ‘वर्धा’ में स्थापित किया। बाद में 1936 में वे निकटवर्ती गांव ‘सेगांव’ में गए जो कि उन्हें जमनालाल बजाज ने उपहार स्वरूप दिया था।
करो या मरो का नारा
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अधीन होने वाले चुनावों में कांग्रेस ने ‘अनिच्छापूर्वक’ भाग लेने की स्वीकृति प्रदान कर दी। इसके लिए कांग्रेस मंत्रिमंडल का भी गठन किया गया किंतु बाद में इसने भारत के युद्ध में भाग लेने की घोषणा के प्रश्न पर त्याग पत्र दे दिया।
Mahatma Gandhi जी इस संकटकाल में सविनय अवज्ञा आंदोलन द्वारा अंग्रेजों के लिए किसी प्रकार का खतरा उत्पन्न करना नहीं चाहते थे किंतु स्व-शासन के मुद्दे पर सरकार की अरुचि से उन्हें काफी निराशा हुई। इसके विरोधस्वरूप लघु स्तर पर सत्याग्रह की शुरूआत हो गई। युद्ध में ब्रिटेन की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन को इस प्रस्ताव के साथ भेजा कि युद्ध के पश्चात् सभी मांगें कार्यान्वित कर दी जाएंगीं। इस मिशन से सभी असंतुष्ट थे । जापान की तरफ से खतरा मंडरा रहा था और गांधी जी का विचार था कि भारत को उसकी नियति पर छोड़ देना चाहिए। अब चाहे भले ही विद्रोह हो पर अंग्रेजी सरकार को यहां से खदेड़ना ही होगा।
8 अगस्त, 1942 को बम्बई में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सम्मेलन में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का संकल्प और गांधी जी के नेतृत्व में वृहद स्तर पर सामूहिक अहिंसात्मक आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव पारित किया गया। गांधी जी ने घोषणा की कि, “या तो हम भारत को स्वतंत्र कराएंगे या इसी प्रयास में मर जाएंगे, हमेशा की गुलामी देखने के लिए हम जिन्दा नहीं रहेंगे।” शीघ्र ही गांधी जी अन्य समस्त शीर्ष कांग्रेसी नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिये गए। विरोध व हिंसा की आग चारों तरफ भड़क उठी।
महात्मा गांधी जी की मृत्यु
महात्मा गांधी जी अपना अंतिम उपवास 14 जनवरी, 1948 को शुरू किया । गांधी जी ने घोषणा किया कि उनका यह आमरण अनशन भारत एवम पाकिस्तान के हिंदुओं और मुसलमानों के अंतःकरण को निर्देशित करेगा। 18 जनवरी 1948 को बाबू राजेंद्र प्रसाद सहित हर समुदाय के 100 लोंगो ने मुसलमानों के विश्वास व जान और माल की रक्षा करने का वचन दिया। 20 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा कर रहे थे , उसी समय मदन लाल ने एक बम फेंक दिया। इससे केवल चार दिवारी को ही क्षति पहुंची । मदन लाल को गांधी जी की इक्षा पर माफ़ कर दिया गया ।
30 जनवरी 1948 को एक सभा के दौरान बिड़ला मंदिर के प्रांगण में नाथू राम गोडसे ने गांधी जी के ऊपर अपने पिस्तौल से तीन गोलियां चलाई । गांधी जी ‘ हे राम ’ शब्द का उच्चारण करते हुए वहीं पर गिर गए और अपना दम त्याग दिया। Mahatma Gandhi
श्री अरविंद घोष Arvind Ghosh (1872-1950 ) : श्री अरविंद घोष आधुनिक भारत केएक महान विचारक व दार्शनिक थे। वह स्वतंत्रता आंदोलन के भी एक महान व प्रसिद्ध नेता थे जो बाद में एक योगी व रहस्यपूर्ण व्यक्ति बन गये थे।
Biography of Arvind Ghosh
श्री अरविंद घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को पश्चिम बंगाल के कोन नगर हुआ था। दार्जलिंग के लोरियो कान्वेंट स्कूल से अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद वह उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गये। उन्होंने लंदन के सेंटपॉल स्कूल में 1884 में प्रवेश लिया। सीनियर क्लासिकल स्कॉलरशिप प्राप्त करने के बाद 1890 में उन्होंने किंग कालेज कैंब्रिज में दाखिला लिया।
भारत वापस आने के बाद उन्होंने संस्कृत और भारतीय संस्कृति तथा धर्म व दर्शन का गहन अध्ययन किया और उसके बाद 1910 तक बंगाल कांग्रेस में रहते हुए देश को आजादी दिलाने के लिए तथा ब्रिटिश सरकार को जड़मूल से नष्ट कर देश से बाहर खदेड़ने के लिए पूरे भारतवासियों से आग्रह किया कि सामानों तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा चलायी गयी किसी भी योजना या अभियान का जमकर विरोध व बहिष्कार करें।
उनकी इस असीम सक्रियता को देखते ब्रिटिश सरकार ने 1910 में उन्हें अलीपुर जेल में एक हुए वर्ष के लिए बंद कर दिया।अपनी जेल यात्रा के दौरान श्री अरविंद घोष को आध्यात्मिक रहस्यमय अनुभव प्राप्त हुआ जो कि उनके ऊपर गहरा व गंभीर प्रभाव छोड़ गया। उसके बाद उन्होंने एक योगी की तरह जिंदगी जीने के लिए जीवन शैली में परिवर्तन कर लिया तथा तमिलनाडु के पाण्डिचेरी नामक स्थान पर करने के लिए चले गये और वहां पर एक आश्रम की स्थापना की।
Arvind Ghosh का दर्शन सिद्धांत एक माता के सदृश है जो कि हर तरह से सहनशीलत है। अवली को एक सार्वभौमिक आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में 1968 में स्थापित किया गया। अरविंद ने एक दार्शनिक पत्रिका द आर्य का प्रकाशन शुरु किया ।
Books of Arvind Ghosh
द आइडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी, द सिन्थिसिस ऑफ योग व द लाइफ डिवाइन आदि।
अरविन्द घोष का राजनैतिक सफर
श्री अरविंद( Arvind Ghosh ) के राजनीतिक व दर्शन के चिंतन को दो अलग-अलग धारा- के रूप में नहीं बांटा जा सकता है क्योंकि उनके सभी राजनैतिक चिंतन का आधार आध्यात्मिक व नैतिक सिद्धांत के ऊपर टिका हुआ है। जिसके अंतर्गत उनके दर्शन का चिंतन रूप छिपा हुआ है। इस प्रकार अरविंद का राष्ट्रवाद साधारण रूप में केवल एक राजनैतिक योजना या बौद्धिक विचार को ही समाहित नहीं किये हुए है बल्कि ईश्वर प्रदत्त एक धर्म का आध्यात्मिक प्रयास भी है। राष्ट्रवाद एक सक्रिय धर्म का रूप है जिसका मुख्य या प्रधान हथियार आध्यात्मिक है।
अरविंद घोष का विश्वास था कि भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त होगी। अतः उनकी नजर में स्वराज केवल राजनैतिक स्वतंत्रता ही नहीं है। स्वराज का अभिप्राय है – आध्यात्मिक मार्ग दर्शन के अंतर्गत पूरी मानवता को समाहित कर लेना। राष्ट्रीय उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए अरविंद ने सत्याग्रह आंदोलन के साथ ही साथ सक्रिय रूप से शक्ति का भी समर्थन किया। एक राष्ट्र के लिए राजनैतिक स्वतंत्रता का महत्व होता है तथा राष्ट्र की सुरक्षा हर कीमत पर करनी चाहिये, चाहे उसके लिए कोई भी उचित माध्यम अपनाना पड़े।
श्री अरविंद घोष इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा व शान के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जी-जान से अपना जीवन पूर्णतया समर्पित करना चाहिए। केवल राष्ट्र के साथ स्वयं अपनी पहचान बनाकर ही कोई व्यक्ति किसी तरह की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। उनके दृष्टिकोण में मात्र व्यक्तियों का समूह ही राष्ट्र नहीं है। राष्ट्र एक संगठन के रूप में है जैसा कि एक व्यक्ति का अपना अस्तित्व है, उसी तरह राष्ट्र का भी अपना अस्तित्व है।
समाज की गतिविधियां एक व्यक्ति को मानवीय आदर्श प्राप्त करने में मदद करती है। इस तरह समाज का आदर्श मानवीय अस्तित्व के धरातल पर टिका हुआ है।
एनी बेसेंट का जीवन परिचय | Annie Besant (1847-1933 ) : एक आयरिश महिला एनी बेसेंट 1893 में भारत में आयीं। एनी बेसेंट भारत के धार्मिक परंपराओं से बहुत गहराई से प्रभावित व प्रेरित थी और वह धार्मिक क्षेत्रों में भी कार्य करना चाहती थीं। वह राजनैतिक क्षेत्र में शुरूआती दौर में भारत में ठहरने व कार्य करने केउद्देश्य से भारत नहीं आयी थी।
Annie Besant
जन्म–१ अक्टूबर १८४७लन्दन कलफम
मृत्यु –20 सितम्बर 1933 (उम्र 85)अड्यार मद्रास
प्रसिद्धि कारण – थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला
जीवनसाथी– रेवरेण्ड फ्रैंक बीसेंट
Annie Besant biography
Annie Besant 1888 में इंग्लैण्ड में थियोसोफिकल सोसाइटी के प्रधान के रूप में नियुक्त हुई थीं और उन्होंने सामाजिक सुधार के कार्य में प्रशंसनीय भूमिका निभाई थी। वह उच्च शिक्षा में सुधार लाने के लिए प्रयास करती रहीं और इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने सेंट्रल हिन्दू स्कूल और कॉलेज की स्थापना की जो कि बाद में चलकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। वह निम्न जाति के महिलाओं की सुरक्षा, अधिकार व समानता की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहीं। वह सच्चे अर्थों में पंचायती राज व्यवस्था का कायाकल्प करना चाहती थीं। उन्होंने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद लोटस सांग्स के नाम से किया।
उन्होंने ऋषि अगस्त्य की प्रेरणा से 1913 में राजनीति में प्रवेश किया जो चाहते थे कि एनी बेसेंट, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए समर्पित लोगों के साथ एक छोटा-सा संगठन बनाएं। उनका मानना था कि इस तरह धीरे-धीरे सामाजिक सुधार की वास्तविकता से परिचय कराकर लोगों को ब्रिटिश सरकार की गुलामी को संघर्ष द्वारा समाप्त किया जा सकता है।
Annie Besant राजनीति में सक्रिय हो गयीं और अद्वितीय यश प्राप्त किया। उस महान विप्लवकारी दिनों में एक विदेशी महिला होते हुए भी उन्होंने एक कुशल ‘नेत्री के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली थी। इस बीच उन्होंने अपने विरोधियों का डटकर सामना भी किया। एक तरफ उन्होंने सनातन धर्म में संदेह करने वालों को जाग्रत करते हुए कहा कि वह प्राचीन इतिहास के अनुरूप एक हिन्दू हैं, दूसरे तरफ भारत में रह रहे अंग्रेजों ने उनका तिरस्कार किया, तब वह बार-बार उन्हें कहती रहीं कि भारतीय सनातन धर्म उन्हें राजनैतिक व सांस्कृतिक रूप से जाग्रत कर सकता है बशर्ते कि वे लोग जाग्रत होना चाहें, अन्यथा नहीं उन्होंने राजनीति में उस समय कदम रखा जब कांग्रेस कठिन परिस्थितियोंसे गुजर रही थी।
सूरत विभाजन ने यह निर्णय लेने को मजबूर कर दिया किविदेशियों को देश से बाहर निकाल देने के लिए कार्य-कलाप में आई कमियों को दूर कर एक ठोस कदम उठना चाहिए था। बेसेंट ने महसूस किया कि कांग्रेस में क्रांतिकारियों का महत्व बहुत अधिक है। इन सब बातों को देखते हुए वह दृढ़ संकल्प लेकर भारत के राजनीति में कुछ सुधार कार्य करने केलिए 1916 में लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस में सम्मिलित हुईं।
उनकी राय में भारत को स्वतंत्र सरकार व राष्ट्र की मांग करनी चाहिए और इसके लिए प्रथम विश्वयुद्ध से बिल्कुल प्रभावित नहीं होना चाहिये। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य था-कांग्रेस के सहायक के रूप में कार्य करना। पर कांग्रेस ने उनके ‘होमरूल लीग’ को अस्वीकार कर दिया, उन्होंने इन सबके बावजूद अपने इस आंदोलन की कई शाखाएं खोलीं जिसके अंतर्गत वह ब्रिटिश सरकार के ज्यादतियों के खिलाफ काफी प्रगतिशील कार्य करती रहीं।Annie Besant
ऐनी बेसेंट Annie Besant राजनैतिक व सामाजिक सुधारों के विचारों को प्रसारित करती रहीं। वह 1917 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्ष नियुक्त की गईं । ऐनी बेसेंट के विचारों और कांग्रेस तथा गांधी के विचारों में भिन्नता बढ़ती गयी जिसके चलते वे शीघ्र ही राजनैतिक रंगमंच की पृष्ठभूमि से हट गयी। वह महसूस करती थी कि “मोंटेग्यू-चेल्म्सफोर्ड सुधारों” के जरिए ही भारत को आजादी दिलायी जा सकती है पर गांधी की दृष्टि में यह सुधार अपर्याप्त व अक्षम था।Annie Besant
ऐनी बेसेंट ने 1920 में कांग्रेस के में भाग नहीं लिया। अपने जीवन के शेष 13 वर्षों में वह राजनीति से सब नागपुर अधिवेशन तरह से अलग हो गयीं, फिर कभी किसी अधिवेशन में न तो भाग लिया न कभी कोई परामर्श दिया।
जवाहरलाल नेहरू | Jawaharlal Nehru अनेक भारतीयों, जिनमें वृद्ध और नौजवान भी सम्मिलित थे तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विदेशी शासन के विरुद्ध अत्यंत साहस, बुद्धिमत्ता, गौरवशाली एवं मानवीय ढंग से स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी तथा भारत को स्वतन्त्र कराकर विश्व पटल पर एक स्वस्थ लोकतान्त्रिक देश के रूप में स्थापित किया, जिसके फलस्वरूप भारत प्रगति एवं समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर हुआ। भारतीय स्वतन्त्रता के महान, अग्रणी देवदूत एवं स्वाधीनता प्राप्ति के कंटकपूर्ण मार्ग पर चलने वाले इस अदम्य नेता का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को हुआ था।
नेहरू के पूर्वज कश्मीर से आये थे। उनका मौलिक पारिवारिक नाम नेहरू नहीं बल्कि कौल था। नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू एक अत्यंत सफल वकील थे, जिनकी धन अर्जित करने की योग्यता उनकी खर्च करने की योग्यता की अपेक्षा अधिक थी।
पं॰ जवाहरलाल नेहरू का
पं॰ जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय
जब जवाहरलाल 3 वर्ष के थे, तब उनके पिता इलाहाबाद के आनन्द भवन में आ गये, जो कि एक अत्यंत शानदार घर था जिसमें एक स्विमिंग पूल, बिजली तथा पानी की पर्याप्त व्यवस्था थी। इस प्रकार की सुविधाओं से युक्त भवन इलाहाबाद में पहली बार बना था। आनन्द भवन विदेशी तथा भारतीय जीवन पद्धति के बीच उत्कृष्ट सामंजस्य का उदाहरण प्रस्तुत करता था।
मोतीलाल नेहरू ने अपनी पत्नी स्वरूप रानी एवं बच्चों के साथ आनन्दमय जीवन व्यतीत किया। जैसा कि इस जीवन के बारे में सच्चाई को स्वीकार करते हुए जवाहरलाल ने अपनी आत्मकथा में वर्णित किया है, “एक समृद्धिशाली मां-बाप की इकलौती सन्तान के बर्बाद होने की सम्भावना ज्यादा रहती है , और वह भी विशेष रूप से भारत में हो तो बर्बाद होने से बचने की संभावना अत्यंत कम ही रहती है।” उनका बचपन एकाकी रहा। Jawaharlal Nehru
Jawaharlal Nehru की शिक्षा
16 वर्ष की आयु में वे हैरो विश्वविद्यालय लन्दन में पढ़ने गए। उससे पूर्व नेहरू कभी स्कूल नहीं गए। उनकी शिक्षा-दीक्षा क्रमबद्ध ढंग से अंग्रेजी आयाओं तथा निजी शिक्षकों द्वारा घर पर ही हुई और इन सबमें केवल फर्डीनाण्ड टी. ब्रुक्स ही युवा नेहरू को प्रभावित कर सके व अपनी छाप छोड़ पाये ब्रुक्स ने जवाहरलाल के मन-मस्तिष्क में दो रुचियों का विशेष रूप से विकास किया, एक, पढ़ने में रुचि लेना, तथा; दूसरा, विज्ञान और उसके रहस्यों के प्रति एक जिज्ञासु प्रवृत्ति अपनाना।Jawaharlal Nehru
मई 1905 में जवाहरलाल ने अपने माता-पिता के साथ में इंग्लैण्ड की यात्रा की। उन्होंने 1905 के क्रिसमस सत्र में हैरो विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और 1907 के ग्रीष्म सत्र में उसे छोड़ दिया। हैरो में उन्होंने वे सभी कार्य किए जो अनुरूप एक पब्लिक स्कूल के लड़कों के लिए अनिवार्य थे। यद्यपि वहां के वातावरण के अनुकूल न होने पर भी उन्होंने स्वयं को नई परिस्थितियों के ढाला। वे यहां स्वयं अपनी इच्छा से आए थे किंतु यहां के बौद्धिक संयम एवं कारावास स्वरूप जीवन से उन्हें कष्ट पहुंचा।
अक्टूबर 1907 में वे विश्व के सबसे बड़े विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी महाविद्यालय में अध्ययन हेतु गए। विज्ञान विषय में रुचि के कारण उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की अंतिम उपाधि परीक्षा के लिए प्राकृतिक विज्ञान को चुना, जबकि उनके विषय रसायनशास्त्र, भू-गर्भशास्त्र तथा वनस्पति विज्ञान थे। Jawaharlal Nehru
किंतु उनकी रुचि का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था और स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु प्रवृत्ति होने के कारण उनका मस्तिष्क नवीन अनुभवों की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता था। राजनीति शास्त्र व अर्थशास्त्र उन्हें आकर्षित करते रहे तथा इतिहास व साहित्य के प्रति उनका झुकाव दिनों-दिन बढ़ता गया। जो भी हो पर जवाहरलाल विश्वविद्यालयी जीवन में छात्रों के बीच अपना कोई विशेष प्रभाव नहीं छोड़ पाये। Jawaharlal Nehru
ब्रिटेन में 7 साल तक रहने के बाद भी जवाहरलाल का परीक्षा परिणाम बहुत ही असंतोषजनक रहा पर पुस्तक प्रेमी होने के कारण उन्होंने एक अच्छा-सा पुस्तकालय बना लिया था। एम.जे. अकबर के अनुसार, “जवाहरलाल निश्चित रूप से ब्रिटेन के प्रेमी हो गये।” इसका प्रमाण यह है कि अपनी वापसी के 10 साल बाद भी मई 1922 में अपने ट्रायल के संबंध में चर्चा करते हुए ब्रिटिश जज से कहा, “मैं इंग्लैण्ड व अंग्रेजों के प्रति उतने ही लगाव के साथ भारत वापस आया हूं जितना कि एक भारतीय के लिए होना सम्भव था।
जवाहरलाल नेहरू | Jawaharlal Nehru देशभक्ति व स्वाधीनता के प्रति ब्रिटिश सरकार की प्रतिबद्धता के वे प्रशंसक थे। भारत में एक भारतीय के रूप में पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे। धीरे-धीरे ब्रिटिश नियमों के प्रति उनकी घृणा इतनी बढ़ती गई जितनी कि वे किसी से घृणा नहीं करते थे। वे खोज और उत्साह की मनोभावना के साथ इंग्लैण्ड गये थे लेकिन भारत की खोज के लिए अपनी मातृभूमि को लौट आए। यह कम महत्वपूर्ण नहीं है कि कुछ ही वर्षों के बाद उनकी जो पुस्तक प्रकाशित हुई वह भारत की खोज (Discovery of India) ही थी।Jawaharlal Nehru
नेहरू सर्वप्रथम गोपाल कृष्ण गोखले की “सर्वेन्ट्स ऑफ इन्डिया सोसायटी” की तरफ आकर्षित हुए। सेवा व त्याग की भावना से ‘सोसायटी’ से प्रभावित होते हुए भी उन्होंने न तो तब न बाद में उसमें सम्मिलित होने की बात सोची । फ्रैंक मोरास के अनुसार, “उस समय नेहरू की नजर में गांधी का नाम बहुत गइराई तक घर कर गया। दक्षिण अफ्रीका सरकार के खिलाफ गांधी द्वारा संचालित नटाल सत्याग्रह से नेहरू बहुत प्रभावित हुए, जो कि श्रमिकों पर लगने वाले वार्षिक कर को समाप्त करने या रद्द करने के लिए चलाया था।
नेहरू का विवाह 8 फरवरी, 1910 को दिल्ली में कमला के साथ हुआ। 26 वर्षीय जवाहर तथा 17 वर्षीया कमला का विवाह उस समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। 19 नवम्बर, 1917 को इस दम्पत्ति के घर एक पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम इन्दिरा प्रियदर्शनी रखा गया ।Jawaharlal Nehru biography
आधुनिक भारत के राजनैतिक इतिहास में 1916 के वर्ष का अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। उस वर्ष कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने एक साथ मिलकर काम करने का निर्णय किया। इसी वर्ष नेहरू की पहली बार गांधी जी से मुलाकात हुई। इस अधिवेशन में न तो नेहरू किसी किसी निर्णय पर पहुंच पाए और न ही गांधी जी। उसी वर्ष नेहरू को तिलक और एनी बेसेन्ट द्वारा संचालित प्रॉविन्शियल होम रूल लीग का संयुक्त सचिव बना दिया गया। बहुत समय बाद नेहरू ने श्रीमती बेसेन्ट के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, “उनके व्यक्तित्व ने मेरे बचपन को काफी प्रभावित किया और राजनीति में हिस्सा लेने के बाद भी उनका प्रभाव बरकार रहा ।”Jawaharlal Nehru biography
डॉक्टर जाकिर हुसैन (1897-1969): डॉ. जाकिर हुसैन एक प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी व एक महान शिक्षाशास्त्री थे। इनका जन्म फरवरी 1897 में हैदराबाद में एक अफगानी परिवार में हुआ था। 1913 में इटावा के “इस्लामिया हाईस्कूल” से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ के “मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज” में प्रवेश लिया। जाकिर हुसैन अपने समय के मेधावी विद्यार्थी थे तथा साथ ही साथ अन्य कार्यकलापों में भी असाधारण रूप से उनकी प्रतिभा का निखार देखने को मिलता था।
Dr. Jakir Husain
जाकिर हुसैन का राजनैतिक जीवन 1920 में शुरू हुआ तथा गांधी के आह्वान पर 1921 के असहयोग आंदोलन में एक वीर सेनानी के रूप में अपने आपको देश की आजादी प्राप्ति के पथ पर समर्पित कर दिया तथा शिक्षा संस्थान के अध्ययन से अलग कर लिया। गांधी के मिशन से गहरे रूप में प्रभावित होने के बाद राष्ट्रीय शिक्षा के केंद्रीय विकास के लिए कुछ विद्यार्थियों व अध्यापकों की मदद से एक संस्थान की स्थापना की जो कि बाद में जामिया मिलिया इस्लामिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।1923 में वे उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए जर्मनी गये तथा 1926 में बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।Dr. Jakir Husain
जर्मनी में अपनी यात्रा के दौरान जाकिर हुसैन जामिया के साथ भी संपर्क में रहे और घनिष्ठ रूप में उसके विकास के लिए प्रयास करते रहे। 1926 में भारत वापस आने पर 29 वर्ष की अवस्था में विश्वविद्यालय के उप-कुलपति के पद पर नियुक्त किये गये । उनके कैप्टनशिप के अंतर्गत उन्होंने जामिया को उच्च शिखर पर पहुंचाया, जिसके परिणामस्वरूप इस विश्वविद्यालय ने विश्व के शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।डॉ. जाकिर हुसैन 2631997 में उन्होंने वर्धा में राष्ट्रीय योजना सम्मेलन में भाग लिया। जाकिर हुसैन को “प्रारंभिक राष्ट्रीय शिक्षा योजना” का विस्तार प्रारूप तैयार करने का भार सौंपा गया। इस संबंध में उनके द्वारा तैयार प्रारूप बड़े स्वागत के साथ स्वीकृत कर लिया गया। इसके साथ ही साथ जाकिर हुसैन ने प्रारंभिक शिक्षा प्रचार की भी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। Dr. Jakir Husain
1948 में उन्हें सर्वसम्मति से यूनिवर्सिटी कोर्ट द्वारा “अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय” का उपकुलपति नियुक्त किया गया। 1948 में उन्हें “भारतीय विश्वविद्यालय आयोग” का एक प्रतिष्ठित सदस्य नियुक्त किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में उनके प्रतिभायुक्त कार्यों को देखते हुए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) के प्रशासनिक बोर्ड में एक सदस्य के रूप में नियुक्त किये गये। वह “भारतीय प्रेस आयोग”, “अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सेवा” तथा सीबीएसई आदि से भी जुड़े रहे।डॉ. जाकिर हुसैन 1952 व 1956 में दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। 1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। 1962 में उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति पद पर नियुक्त किया गया। 1967 में उन्हें देश के राष्ट्रपति पद पर नियुक्त किया गया। Dr. Jakir Husain
उनका देहांत 3 मई 1969 को उस पद पर रहते ही हो गया।डॉ. जाकिर हुसैन ने प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक तथा एडविन कैनन की पुस्तक इलिमेंटरी पोलिटिकल इकोनामी का अनुवाद किया। उन्होंने जर्मन भाषा में एक पुस्तक लिखी-डाई बोट्स चाफ्टडेस महात्मा गांधी। उनके बहुत से भाषणों का संकलित जो कि भिन्न-भिन्न सभाओं व अधिवेशन में दिया गया, का संकलन रूप डायनामिक यूनिवर्सिटी नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। उन्होंने बच्चों के लिए बहुत-सी छोटी-छोटी कहानियां उपनाम या छद्म नाम से लिखी। उनमें से एक था रुक्कैया रेहाना ।एक महान शिक्षाशास्त्री के रूप में वह इस बात पर जोर देकर कहते थे कि प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर ही एक बच्चे का, चहुंमुखी विकास किया जा सकता है। Dr. Jakir Husain
वह इस बात के भी प्रबल रूप से समर्थक थे कि धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चलकर ही साम्प्रदायिकतापूर्ण राजनीति व व्यवहार से छुटकारा पाया जा सकता है। डॉ. जाकिर हुसैन का आध्यात्मिक दर्शन के ज्ञान का भी कोई जवाब नहीं जिसके चलते उनकी जिंदगी भी सूफी संतों के अनुरूप रही। राष्ट्र के लिए पूर्ण रूप से समर्पित मानवीय गुणों के इस चितेरे को 1963 में भारत रत्न के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।Dr. Jakir Husain
Sonu Kumar biography | सोनू कुमार बिहार ब्वॉय । सोनू कुमार बिहार में जन्मे एक बहुत ही गरीब परिवार का बच्चा है । जो अपने पढ़ाई के लिए बहुत ही चिंतित है । और आईएएस अफसर बनने के लिए बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं । सोनू कुमार का कहना है कि अगर सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था को नहीं सुधरा गया तो एक भी बच्चा पढ़ लिख कर अफसर नही बन सकता है ।
सोनू कुमार
बहुत ही कम उम्र का बच्चा जो महज 12 वर्ष का बच्चे ने पूरे सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है । इस छोटे से बच्चे ने आईएएस बनने का सपना लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से दो बार मिल चुका है । और उनसे बोल भी चुका है कि ,”सर हमको पढ़ने के लिए हिम्मत दीजिए “। Sonu Kumar biography
sonu viral boy hoby/ WIKI इनका परिवार दही बेचकर चलता है । जो स्कूल की फीस भरने तक सक्षम नहीं हैं ।
सोनू कुमार के माता पिता
सोनू कुमार एक बहुत ही गरीब परिवार से है । इनके घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता है । मां एक हाउस वाइफ और पिता एक गरीब किसान हैं । जिन्हे शराब पीने की लत लग गई है । सोनू की फीस भरने में इनके पिता सक्षम नहीं हैं । इन्ही सब समस्याओं को लेकर सोनू कुमार ने अपने शिक्षा के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिल चुका है । मुखमंत्री ने आश्वासन भी दिया है । अपने अधिकारियों से सोनू के फीस और एडमिशन की व्यवस्था करने के लिए बोल भी दिए हैं । Sonu Kumar biography anayasha.com
सोनू कुमार की शिक्षा
सोनू कुमार एक बहुत ही होनहार छात्र हैं । ये नीमा कुल में एक प्राथमिक विद्यालय सरकारी स्कूल में कक्षा पांच में पढ़ाई कर रहे हैं । सोनू का कहना है कि सरकारी स्कूल में पढ़कर कोई भी छात्र अच्छी सर्विस नहीं पा सकता है । ये सरकारी स्कूल के कक्षा 8 तक और प्राइवेट स्कूल के कक्षा पांच तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं । पढ़ें anayasha.com
Sonu Kumar biography | सोनू कुमार का जीवन परिचय
नालंदा बिहार के एक छोटे से गांव में पैदा हुए हैं । इनकी उम्र 12 वर्ष है । सोनू के बारे में कुछ जानकारियां निम्न लिखित हैं ।
नाम
सोनू कुमार
निक नेम
सोनू
जन्म स्थान
नालंदा बिहार
उम्र
12 वर्ष
योग्यता
पंचावी क्लास
सपना
आईएएस बनना चाहते हैं
व्यवसाय
दही बेचना
माता
हाउस वाइफ
पिता
किसान
धर्म
हिंदू
सोनू कुमार
अभी सोनू कुमार के बारे में जो भी जानकारी मिल पाई है वो मैने लिखा है जैसे जैसे कोई जानकारी मिलेगी इस पोस्ट में अपडेट करते रहेंगे । आप को यह पोस्ट कैसा लगा कृपया कमेंट करके बताएं । Sonu Kumar biography
सोनू कुमार के बारे में कुछ रोचक तथ्य
सोनू कुमार एक बहुत ही निडर बालक है ।
यह पांचवी कक्षा तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है ।
दो बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से मिल चुका है ।
सरकारी शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ अपने शिक्षक पर भी सवालिया निशान लगा दिया है ।
ये एक शाकाहारी हैं ।
इनके दो चाचा हैं जिनका नाम रंजीत कुमार और रनबीर कुमार हैं ।
सोनू कुमार ने बहुत लोगों का ऑफर ठुकराया
सोनू को बहुत से लोगों ने ऑफर दिया था लेकिन इस बच्चे ने उनके ऑफर को ठुकरा दिया था । एक बार पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने कहा कि जब तुम आईएएस अधिकारी बन जाना तो मेरे अंडर में काम करना । इसपर सोनू का जवाब था कि मैं किसी के अंडर में काम नहीं करूंगा ।
इस छोटे से बच्चे के जवाब को सुनकर लोग बहुत हैरान हैं मीडिया वाले भी हैरान हो जाते हैं । एक बार किसी ने पूछा कि तुम क्या मुख्यमंत्री बनोगे तो उसने जबाब दिया की उसे मंत्री नहीं आईएएस बनकर देश की सेवा करनी है ।
सोनू की उम्र कितनी है ?
सोनू की उम्र सन 2022 तक 11 वर्ष की हो गई है ।
सोनू कुमार का गांव किस जिले में है ?
सोनू कुमार बिहार के जिला राजगीर नालंदा के रहने वाले हैं ।
Janhavi Panwar | जान्हवी पंवार एक वंडरगर्ल । जान्हवी पंवार एक मशहूर गर्ल जो वंडर गर्ल के जानी जाती हैं । इनके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है जिसकी वजह से लोग इन्हे वंडर गर्ल के नाम से जानते है । कारण ये है की बहुत कम उम्र में ही वो मुकाम हासिल कर लिया है जो बहुत हाई व्यक्तित्व वाले व्यक्ति भी नहीं कर सकता है । 16 साल की उम्र मे ही इन्होने सत्यवती दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स से ग्रेजुएशन कर चुकी हैं । 9 बिदेशी भाषाओं मे उन्ही के लहजे बात करने में महारत हासिल कर चुकी हैं । जान्हवी पंवार को महज 11 साल की उम्र मे ही इनकी प्रतिभा को देखते हुए “ इंडियाज़ वंडर गर्ल ” की उपाधि दी गयी थी ।
ये पढ़ने में इतना तेज थी , इसीलिए जान्हवी पंवार को एक साल मे दो दो क्लास पास पास करने की अनुमति दी गयी थी । महज 7 साल की की उम्र मे ही वे आठवीं कक्षा में पहुच गयी थी । जान्हवी को बहुत कम उम्र में ही नई भाषाओं को सीखने का शौक हो गया था ।
Janhavi Panwar ki biography | जान्हवी पंवार का जीवन परिचय
जान्हवी पंवार का जन्म 8 नवंबर 2003 को शहरमलपुर , समालखा ,पानीपत हरियाणा में हुआ था । इनके पिता का नाम बृजमोहन है जी एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थे । ये माध्यम वर्ग परिवार से बिलाँग करती है । प्रारम्भिक शिक्षा हरियाणा के स्कूल से की थी और ग्रेजुएशन सत्यवती दिल्ली यूनिवर्सिटी से किया था ।
जान्हवी पंवार के रोचक तथ्य
जान्हवी पंवार (Janhavi Panwar) एक अद्वितीय प्रतिभा की धनी हैं । इनके बारे में कुछ जानकारियाँ है जो निम्नलिखित है ।
Janhavi Panwar की सबसे बड़ी बात यह है की 9 बिदेशी भाषाएँ फर्राटे से उन्ही की स्टाइल मे बोल सकती है ।
जान्हवी के पिता ने बताया कि , “जब वो केवल 1 वर्ष कि थी तभी उनको एहसास हो गया था कि उनकी बेटी अपने उम्र के बच्चों से काफी अलग थी ।
ये एक मोटीविशेनल स्पीकर भी हैं जो आईएएस को ट्रेनिंग भी देती हैं ।
बहुत से बच्चों को इंग्लिश सीखने का क्लास भी लेती हैं ।
Janhavi Panwar आईआईटी के छात्रों से लेकर कई बड़ी संस्थाओं में भी मोटिवेशनल स्पीच दे चुकी है । अपने आप को मोटिवेट करने के लिए बहुत से किताबों काअध्ययन कर चुकी हैं ।
इनके पिता इनको इंग्लिश सीखने के लिए हर संडे को लाल किला ले जाया करते थे । और बाहर से आए फारेनर से बात करने के लिए कहते थे । ऐसा करने से जान्हवी को इंग्लिश सीखने में काफी मदद मिलती थी । यहाँ तक की उनकी बाडी लंगवेज़ को भी बड़े ध्यान से पढ़ती थीं और वैसे ही बोलने का प्रयास भी करती थीं । और इंग्लिश बोलने में सफल रहीं ।
जान्हवी एक्सेंटस सीखने के बारे में कहती हैं कि शुरू में विडियो देखकर एक से दो घंटे तक बोलेने का प्रयास करती थी । दो चैनल बीबीसीऔर सीएनएन को एक साथ देखकर ब्रिटिश और अमेरिकन एक्सेण्ट से अच्छी तरह से परिचित हो पायी थी । इन दोनों चैनलों के समाचार देखने के बाद इसको बार बार दोहराती थी । कई बार पैरेंट के सामने तो कई बार सीसे के सामने एक्सेण्टस को दोहराती थी ।
जान्हवी कहती हैं कि यह सब इतना आसान नहीं था , अँग्रेजी के कारण हमेशा अपने स्कूल के बच्चों के निशाने पर रहती थीं । जब भी कोई एक्सेन्ट इनकी जबान से स्कूल मे निकाल जाता था तब सभी बच्चे इनको चिढ़ाते थे ।
जान्हवी बचपन से न्यूज़ और अखबारों में आती थी , इसपर भी लोग इन्हे चिढ़ाते थे कि ”तुम पढ़ाई मे अच्छी नहीं हो फिर भी टीवी पर आती हो ।”
दो दो क्लास एक साथ करने के कारण इनके कोई दोस्त भी नहीं बन पाये हैं ।
वंडर गर्ल का टैग न्यूज़ चैनलों ने लगा दिया है । इसके बाद सब लोग इसी नाम से बुलाने भी लगे । Janhavi Panwar
Janhavi Panwar के पिता इंग्लिश सीखने के लिए इंग्लिश कि शार्ट फिल्म और विडियो क्लिप डाऊनलोड करके जान्हवी को सुनाते थे । जिससे उनको सुनकर समझ सके ।
Sonu Sood biography | सोनू सूद का जीवन परिचय , . ये एक बहुत अच्छे अभिनेता हैं । सोनू सूद एक ब्यावहार कुशल और लोकप्रिय अभिनेता हैं । ये समय समय पर लोगों की मदद भी करते रहते हैं । ये एक फिल्मी माडल और निर्माता के साथ साथ विज्ञापन मे भी कार्य करते हैं , जो बालीवुड , टालीवुड , कालीवुड और कन्नड जैसी फिल्मों में कम कर चुके हैं ।
Sonu Sood biography in hindi ( सोनू सूद का जीवन परिचय )
सोनू सूद का जन्म 30 जुलाई 1973 को मोंगा , पंजाब में हुआ था । इनके पिता का नाम शक्ति सागर सूद और माता का नाम सरोज सूद है । इनके पिता पेशे से एक एंटरप्रेन्योर तथा माता सरोज सूद एक टीचर थीं । इनके ब्यक्तिगत जानकार निम्न लिखित है ।
1
नाम
सोनू सूद
2
पिता का नाम
शक्ति सागर सूद
3
माता का नाम
सरोज सूद
4
पत्नी का नाम
सोनाली सूद
5
बच्चे
2 बेटे
6
जन्म स्थान
मोंगा , पंजाब
7
जन्मतिथि
30 जुलाई 1973
8
Ist अवार्ड
2009 में बेस्ट पर्फार्मेंस निगेटिव रोल
9
IInd अवार्ड
2009 में नंदी अवार्ड
10
IIrd अवार्ड
2012 में SIIMA अवार्ड
11
पहली फिल्म
1999 में कालजघर
12
लोकप्रिय किरदार
छेदी सिंह
Sonu Sood biography
सोनू सूद का जीवन
एक दमदार विलेन की भूमिका निभाने वाले सोनू सूद एक बहुत ही उदार और हीरो की छवि रखने वाले , एक मशहूर शख्सियत हैं । सोनू सूद बालीवुड से लेकर साउथ सिनेमा में भी अपने अभिनय को लोहा मनवा चुके हैं । ये बहुत सी भाषाओं की फिल्मों में कम कर चुके हैं ,जैसे हिन्दी ,तमिल , तेलुगू , पंजाबी और कन्नड आदि । ये एक सफल अभिनेता के साथ साथ फिल्म निर्माता भी हैं । Sonu Sood biography
सोनू सूद ने कोरोना काल के समय में लाचार और दुखी लोगों का दिल खोलकर मदद किया था । जिसकी वजह से लोगों के दिलों में एक वास्तविक हीरो के रूप में अपनी जगह बना चुके हैं । Sonu Sood biography | सोनू सूद का जीवन परिचय ।
सोनू सूद की प्रमुख फिल्में
सोनू सूद ने बहुत सारी फिल्मे की हैं जिनमे से कुछ प्रमुख फिल्में निम्नलिखित हैं ।
सोनू सूद के बारे में कुछ ऐसी जानकरियाँ हैं जो निम्नलिखित हैं । Sonu Sood biography ।
सोनू सूद बहुत ही लंबे इंसान हैं । ये लंबाई में अमिताभ बच्चन से भी 1 इंच ज्यादा लंबे हैं । वैसे इनकी लंबाई 6 फुट 1 इंच है ।
सोनू सूद की बड़ी बहन हैं , जिनका नाम मोनिका है जो एक वैज्ञानिक हैं ।
सोनू का बचपन से ही अभिनेता बनने की इक्षा थी , हलाकी इनके परिवार मे किसी भी का ब्यक्ति फिल्मी दुनियाँ से ताल्लुक नहीं था ।
सोनू सूद ने पहली बार जिस फिल्म में काम किया था उस फिल्म का नाम शहीद-ए-आजम था , जो काफी सफल फिल्म रही ।
हिन्दी ,पंजाबी , कन्नड ,तेलुगु , और तमिल , पाँच अलग अलग भाषाओं में फिल्मों में काम कर चुके हैं ।
ये अपनी फिटनेस को लेकर हमेशा सक्रिय रहते हैं । हमेशा एक्सर्साइज़ करते रहते हैं ।
जैकी चैन इनके पक्के दोस्त हैं । इनकी दोस्ती कुन जी फू योगा में शूटिंग के दौरान हुई थी ।
इंहोने चीनी फिल्म जुआन जैन्ग में 2016 में चीनी डेब्यू किया था ।
Sonu Sood biography ,
सोनू सूद के कैरियर की शुरुआत
सोनू सूद बचपन से ही एक इंजीनियर बनाना चाहते थे । इसीलिए नागपुर के यशवंतराव चरण कालेज ऑफ इंजीनियरिंग नागपुर से इंजीनियरिंग भी किया था । लेकिन इसी दौरान सोनू को एक्टिंग और मॉडलिंग का जुनून सवार हो गया । और इसके लिए वे मुंबई आ गए । उनके पास बहुत कम पैसे थे जो कुछ ही दिनों मे खर्च हो गए । ये उस समय एक कमरे में 6 लोगों के साथ रह रहे थे , फिर भी पैसों की तंगी के कारण एक प्राइवेट कंपनी में काम करने लगे । Sonu Sood biography | सोनू सूद का जीवन परिचय
काम के साथ साथ एक्टिंग कंपटीशन में भाग लिया करते थे । इनकी मेहनत रंग लायी और सन 1999 में एक तमिल फिल्म कालजघर में काम करने का मौका मिला । इसके बाद से ही इनके फिल्मी सफर की शुरुआत हो गयी और छोटी मोटी फिल्मों मे काम करने के लिए चांस मिलता गया । एक फिल्म में इंहोने काम किया जो 2008 में जोधा अकबर नाम से थी , इस फिल्म के लिए इन्हे सर्व श्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए नामित किया गया था । Sonu Sood biography.
इसके बाद इंहोने एक से बढ़कर एक फिल्में किया युवा ,मिशन मुंबई ,आशिक बनाया आप ने , सिसकियाँ ,डाइवोर्स , सिंह इस किंग , एक विवाह ऐसा भी , दबंग , ढूंढते रह जाओगे , बुड्ढा होगा तेरा बाप , शूट आउट एट वाडला ,रमईया वस्तामैया ,सिंबा ,राणा जैसी बहुत से फिल्मे कर चुके हैं ।
Sonu Sood biography | सोनू सूद का जीवन परिचय , पढ़कर इनके बारे में जन ही चुके होंगे आशा है आप को पसंद आया होगा । Sonu Sood biography | सोनू सूद का जीवन परिचय । धन्यबाद .
प्रश्न . सोनू सूद का गाँव कौन सा है ?
उत्तर. सोनू सूद का गाँव मोंगा , पंजाब है ।
प्रश्न . सोनू सूद के पिता का क्या नाम है ?
उत्तर. सोनू सूद के पिता का नाम शक्ति सागर सूद और माता का नाम सरोज सूद है । इनके पिता पेशे से एक एंटरप्रेन्योर तथा माता सरोज सूद एक टीचर थीं ।
प्रश्न .सोनू सूद की पत्नी कौन हैं ?
उत्तर . सोनू सूद की पत्नी का नाम सोनाली सूद है । इनका विवाह 1996 में हुआ था ।
प्रश्न . सोनू सूद का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर. सोनुसूद का जन्म 30 जुलाई 1973 को मोंगा , पंजाब में हुआ था।
Allu Arjun Biography height weight , अल्लू अर्जुन की जीवनी ,अल्लू अर्जुन एक तेलुगु भारतीय फिल्म अभिनेता हैं । ये बचपन से ही एक्टिंग करते आ रहे हैं । इन्होंने फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में भी अभिनय कर चुके है । अपने पहली फिल्म गंगोत्री में एक हीरो की भूमिका में नजर आएं हैं । इसके बाद बहुत सारे फ़िल्मों में अभिनय किया है । अल्लू अर्जुन एक मशहूर भारतीय अभिनेता चिरंजीवी के भतीजे हैं ।
अल्लू अर्जुन
Allu Arjun biography in Hindi
अल्लू अर्जुन का पूरा ब्यौरा निम्न लिखित हैं :
1
पूरा नाम
अल्लू अर्जुन
2
घर का नाम
अल्लू , स्टाइलिस्ट स्टार , बन्नी
3
पिता का नाम
अल्लू अरबिंद
4
जन्म तिथि
8 अप्रैल 1983
5
जन्म स्थान
चेन्नई तमिलनाडु भारत
6
धर्म
हिन्दू
7
जाति
यादव
8
भाई का नाम
बड़ा भाई अल्लू बेंकटेश
9
“
छोटा भाई अल्लू सिरीश
10
पत्नी का नाम
स्नेहा रेड्डी 2012–अबतक
11
बच्चे
2
12
माता का नाम
अल्लू निर्मला
13
कार्यकाल
2001 से वर्तमान
14
पेशा
फिल्म अभिनेता , गायक , डांसर
15
राष्ट्रीयता
भारतीय
16
निवास
हैदराबाद तेलंगाना भारत
17
आंख का रंग
भूरा
18
बाल का रंग
भूरा
19
लंबाई
5 फुट 9 इंच
20
वजन
70kg
21
चेस्ट
42 इंच
22
कमर
36 इंच
Allu Arjun biography | अल्लू अर्जुन की जीवनी
अल्लू अर्जुन का फिल्मी सफर
अल्लू अर्जुन बचपन में कुछ फिल्मों में काम किया फिर वयस्क होने के बाद इन्होंने पहली फिल्म गंगोत्री से शुरुआत किया है । इसके बाद इनकी दूसरी फिल्म 2004 में आर्य हिट हुई थी । इन्होंने एक के बाद कई हिट फिल्में किया है । इनकी चौथी फिल्म हैप्पी 2006 में रिलीज़ हुई थी जो बॉक्स ऑफिस पर बहुत हिट हुई । जो बहुत ज्यादा लाभ कमाने में कामयाब रही है ।
2007 में अल्लू अर्जुन की अपनी पांचवी फिल्म देसमुदुरु फिल्म रिलीज हुई जो और अधिक सफल फिल्म रही है । जो रिलीज होने के बाद पहले हफ्ते में ही 19 करोड़ रुपए की कमाई किया । जो अबतक की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म रही है ।
शंकरदादा जिंदाबाद में भी अतिथि भूमिका निभाई थी । इनकी सातवीं फिल्म परुगु 1 मई 2008 को रिलीज हुई , इसके निर्माता दिल राजू और निर्देशक भास्कर थे । यह फिल्म 100 दिनो तक सफलता पूर्वक थियेटरों में चली थी ।और काफी चर्चित फिल्म हुई थी । इसी फिल्म की वजह से एक सफल अभिनेता के रूप में चर्चित हुए ।
इनकी बहुत सारी फिल्मों को मलयालम डब किया गया जिनमें से कुछ फिल्मों का नाम भी बदल दिया गया । जिसकी वजह से ये केरल में बहुत लोकप्रिय हो गए । Allu Arjun biography | अल्लू अर्जुन की जीवनी ।
अल्लू अर्जुन का पारिवारिक परिचय
अल्लू अर्जुन के परिवार में बहुत से लोग पहले से ही फिल्मों में काम कर रहे हैं । इनके पिता एक निर्माता हैं । तथा इनके चाचा भी चिरंजिवी भी एक मशहूर फिल्म अभिनेता हैं । और भी कई परिवार के लोग हैं जो फिल्मों में काम करते हैं । तेलुगु सिनेमा में इनका जन्म ही हुआ है । इन्ही सब वजहों से काफी सफल भी रहे हैं । Allu Arjun biography | अल्लू अर्जुन की जीवनी ।
Allu Arjun ki NET Worth
अल्लू अर्जुन एक बहुत ही मशहूर हैं और एक्टिंग भी बहुत अच्छी करते हैं इसलिए इनकी डिमांड बहुत ज्यादा है । अल्लू अर्जुन की कुल संपत्ति 350 करोड़ रुपए जो 47 मिलियन डॉलर के बराबर होता है । फिल्मों के अलावा इनकी कमाई का मुख्य स्रोत एडवरटाइजिंग भी है ।
अल्लू अर्जुन के कुछ रोचक तथ्य
अल्लू अर्जुन एक बहुत अच्छे चारकोल आर्टिस्ट भी हैं ।
इनको मैक्सिकन और थाई डिस बहुत पसंद है ।
अल्लू अर्जुन एक बहुत अच्छे डांसर हैं ।
इनको खाली समय में पुस्तके पढ़ना बहुत पसंद है ।
इनको रानी मुखर्जी और चिरंजीवी फेवरिट फिल्मी कलाकार हैं ।
इनकी सबसे ज्यादा पसंदीदा तेलुगू फिल्म इन्द्र है ।
अल्लू अर्जुन के दादा एक महान कमेडियन थे , जिनका नाम अल्लू राम लिंगैया है ।
जिमनास्टिक और मार्शल आर्ट के लिए अपने स्कूल में प्रसिद्ध थे ।
अल्लू अर्जुन एक मात्र ऐसे अभिनेता हैं जिनके केरेल में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है ।
इनके तीन चाचा चिरंजीवी , पवन कल्याण और नगेन्द्र बाबू फिल्म इंडस्ट्रीज में कार्य करते हैं ।
फेस्बूक पगे पर इनके 1.5 करोड़ फलोवर हैं ।
अल्लू अर्जुन विज्ञापन एवं माडलिंग में भी कार्य कर चुके हैं ।