एनी बेसेंट का जीवन परिचय | Annie Besant (1847-1933 ) : एक आयरिश महिला एनी बेसेंट 1893 में भारत में आयीं। एनी बेसेंट भारत के धार्मिक परंपराओं से बहुत गहराई से प्रभावित व प्रेरित थी और वह धार्मिक क्षेत्रों में भी कार्य करना चाहती थीं। वह राजनैतिक क्षेत्र में शुरूआती दौर में भारत में ठहरने व कार्य करने केउद्देश्य से भारत नहीं आयी थी।
जन्म–१ अक्टूबर १८४७लन्दन कलफम
मृत्यु –20 सितम्बर 1933 (उम्र 85)अड्यार मद्रास
प्रसिद्धि कारण – थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला
जीवनसाथी– रेवरेण्ड फ्रैंक बीसेंट
Annie Besant biography
Annie Besant 1888 में इंग्लैण्ड में थियोसोफिकल सोसाइटी के प्रधान के रूप में नियुक्त हुई थीं और उन्होंने सामाजिक सुधार के कार्य में प्रशंसनीय भूमिका निभाई थी। वह उच्च शिक्षा में सुधार लाने के लिए प्रयास करती रहीं और इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने सेंट्रल हिन्दू स्कूल और कॉलेज की स्थापना की जो कि बाद में चलकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। वह निम्न जाति के महिलाओं की सुरक्षा, अधिकार व समानता की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहीं। वह सच्चे अर्थों में पंचायती राज व्यवस्था का कायाकल्प करना चाहती थीं। उन्होंने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद लोटस सांग्स के नाम से किया।
उन्होंने ऋषि अगस्त्य की प्रेरणा से 1913 में राजनीति में प्रवेश किया जो चाहते थे कि एनी बेसेंट, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए समर्पित लोगों के साथ एक छोटा-सा संगठन बनाएं। उनका मानना था कि इस तरह धीरे-धीरे सामाजिक सुधार की वास्तविकता से परिचय कराकर लोगों को ब्रिटिश सरकार की गुलामी को संघर्ष द्वारा समाप्त किया जा सकता है।
Annie Besant राजनीति में सक्रिय हो गयीं और अद्वितीय यश प्राप्त किया। उस महान विप्लवकारी दिनों में एक विदेशी महिला होते हुए भी उन्होंने एक कुशल ‘नेत्री के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली थी। इस बीच उन्होंने अपने विरोधियों का डटकर सामना भी किया। एक तरफ उन्होंने सनातन धर्म में संदेह करने वालों को जाग्रत करते हुए कहा कि वह प्राचीन इतिहास के अनुरूप एक हिन्दू हैं, दूसरे तरफ भारत में रह रहे अंग्रेजों ने उनका तिरस्कार किया, तब वह बार-बार उन्हें कहती रहीं कि भारतीय सनातन धर्म उन्हें राजनैतिक व सांस्कृतिक रूप से जाग्रत कर सकता है बशर्ते कि वे लोग जाग्रत होना चाहें, अन्यथा नहीं उन्होंने राजनीति में उस समय कदम रखा जब कांग्रेस कठिन परिस्थितियोंसे गुजर रही थी।
सूरत विभाजन ने यह निर्णय लेने को मजबूर कर दिया किविदेशियों को देश से बाहर निकाल देने के लिए कार्य-कलाप में आई कमियों को दूर कर एक ठोस कदम उठना चाहिए था। बेसेंट ने महसूस किया कि कांग्रेस में क्रांतिकारियों का महत्व बहुत अधिक है। इन सब बातों को देखते हुए वह दृढ़ संकल्प लेकर भारत के राजनीति में कुछ सुधार कार्य करने केलिए 1916 में लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस में सम्मिलित हुईं।
उनकी राय में भारत को स्वतंत्र सरकार व राष्ट्र की मांग करनी चाहिए और इसके लिए प्रथम विश्वयुद्ध से बिल्कुल प्रभावित नहीं होना चाहिये। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य था-कांग्रेस के सहायक के रूप में कार्य करना। पर कांग्रेस ने उनके ‘होमरूल लीग’ को अस्वीकार कर दिया, उन्होंने इन सबके बावजूद अपने इस आंदोलन की कई शाखाएं खोलीं जिसके अंतर्गत वह ब्रिटिश सरकार के ज्यादतियों के खिलाफ काफी प्रगतिशील कार्य करती रहीं।Annie Besant
ऐनी बेसेंट Annie Besant राजनैतिक व सामाजिक सुधारों के विचारों को प्रसारित करती रहीं। वह 1917 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्ष नियुक्त की गईं । ऐनी बेसेंट के विचारों और कांग्रेस तथा गांधी के विचारों में भिन्नता बढ़ती गयी जिसके चलते वे शीघ्र ही राजनैतिक रंगमंच की पृष्ठभूमि से हट गयी। वह महसूस करती थी कि “मोंटेग्यू-चेल्म्सफोर्ड सुधारों” के जरिए ही भारत को आजादी दिलायी जा सकती है पर गांधी की दृष्टि में यह सुधार अपर्याप्त व अक्षम था।Annie Besant
ऐनी बेसेंट ने 1920 में कांग्रेस के में भाग नहीं लिया। अपने जीवन के शेष 13 वर्षों में वह राजनीति से सब नागपुर अधिवेशन तरह से अलग हो गयीं, फिर कभी किसी अधिवेशन में न तो भाग लिया न कभी कोई परामर्श दिया।
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